हमेशा अपने बड़े बुजुर्गों का सम्मान करें

Blogging Tribe
7 min readNov 10, 2020

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हमारी भारतीय संस्कृति सारे संसार में हमेशा से ही सर्वश्रेष्ठ रही है। यहां सदियों से बुजुर्गों का सत्कार किया जाता है। हमारी भारतीय परिवारों में, घर के बड़े सदस्य को ही पारिवारिक मामलों में पूर्णता निर्णय लेने का अधिकार होता है। हमारे भारत देश में बड़े बुजुर्गों को अधिक अनुभवी और ज्ञान के फव्वारे के रूप में माना जाता है। हमारी संस्कृति में बड़े बुजुर्गों के साथ प्यार व सम्मानजनक व्यवहार किया जाता है। लेकिन यह आधुनिक दुनिया, आज के समय में लोगों का नजरिया बदल रहा है। लोग अपने बड़ों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं, उन्हें सम्मान नहीं दिया जाता। जबकि एक समय था, जब हमारे बुजुर्ग हमारे लिए हमारा गौरव होते थे।

आज के समय में बुजुर्गों की दशा

आज के समय में समाज में हो रहे बदलाव के कारण बड़े बुजुर्गों का सम्मान कम हो रहा है। आज अधिकतर लोग अपने बुजुर्गों को अपने सिर पर बोझ समझते हैं। उन्हें घर से बाहर निकाल देते हैं। वृद्धाश्रम बन रहे हैं। माता-पिता अपने जिन बच्चों का पालन पोषण दिलो जान से करते हैं, आज वही बच्चे अपने बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर रहे। उन्हें घर से बाहर निकाल देते हैं या उन्हें वृद्ध आश्रम छोड़ आते हैं। अर्थात् आज के समय में बहुत से बुजुर्गों की दशा बड़ी दयनीय है। कुछ लोग अपने बड़ों को घर से निकाल दे निकालते हैं। तो वहीं

कुछ बुजुर्गों को घर में ही अपमान, अन्याय व घृणा में जीवन जीने के लिए बाध्य होना पड़ता है। बीमार होने पर उन्हें सही इलाज नहीं मिल पाता। एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर दो बुजुर्ग में से एक बुजुर्ग अपने ही परिवार में दुर्व्यवहार को झेलता है। यह स्थिति न केवल शहरी क्षेत्रों में अपितु ग्रामीण क्षेत्रों में भी आम बात हो गई है।

Western Culture ने Indian Culture को किया प्रभावित-

आज के समय में लोग पश्चिमी संस्कृति को अपनाकर अपनी भारतीय संस्कृति को दिन-प्रतिदिन भूलते जा रहे हैं। लोग स्वार्थी हो रहे हैं। लोगों में प्यार, त्याग और देखभाल जैसे मूल्य कम हो रहे हैं। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। संयुक्त परिवार ऐसे होते हैं जहां पर दादा-दादी का सम्मान किया जाता है, प्यार किया जाता है। इनके टूटने का कारण कहीं ना कहीं परिवार में वृद्धि, नजरिए में बदलाव, पीढ़ी का अंतर आदि है। पश्चिमी संस्कृति को अपनाने से भारतीय संस्कृति बहुत प्रभावित हो रही है।

माता-पिता निःस्वार्थ प्यार और ममता की मूर्त है-

आजकल लोगों का प्यार गर्ज से बंधा होता है। लेकिन इस संसार में केवल माता-पिता ही ऐसे होते हैं, जो अपने बच्चों से निःस्वार्थ भावना से प्यार करते हैं। माता-पिता ममता की मूर्त होते हैं। आज के स्वार्थी युग में बच्चों को अपने माता-पिता से प्यार करने का कोई ना कोई कारण होता है। लेकिन माता-पिता अपने बच्चे से हर स्थिति में बिना किसी शर्त के प्यार करते हैं। वह बिना किसी शिकायत के अपने बच्चों के लिए कई बलिदान देते हैं। माता-पिता तब खुश होते हैं जब उनका बच्चा खुश होता है। वे अपने बच्चों की आंखों में आंसू नहीं आने देते। माता-पिता अपने बच्चों की छोटी से छोटी इच्छा पूरी करने का हर प्रयास करते हैं।

बुजुर्गों का अनुभव हमारा मार्गदर्शन-

हमारे बड़ों ने हम से ज्यादा जिंदगी जी है। अपनी जीवनशैली के दौरान उन्होंने हर तरह की मुश्किलों और बाधाओं को अनुभव किया है। वह हमसे बेहतर हर समस्या का समाधान जानते हैं। वो अनुभव और ज्ञान के सरोवर है। भले ही, पहले समय में जीवन अलग था और हो सकता है, उनके सामने आने वाली समस्याएं भी अलग हो। यह भी संभव हो सकता है कि वे इस तेज प्रौद्योगिकी दुनिया के साथ चलने में सक्षम ना हो। लेकिन फिर भी उनके पास साहस, धैर्य और अनुभव युवा पीढ़ी की तुलना में अधिक बेहतर है। जो लोग अपने बड़े बुजुर्गों के मार्गदर्शन में होते हैं, वे कभी अपने रास्ते से नहीं भटकते हैं।

अर्थात् सच्चाई यही है कि हमारे बड़े बुजुर्गों के पास अनुभवों का खजाना होता है और अगर बच्चे अपने बड़ों की छत्र-छाया और मार्गदर्शन में बड़े होते हैं। तो वह जीवन में अच्छी आदतें सीखते हैं और नए मुकाम हासिल करते हैं।

The wheel of time rotates-

जब एक परिवार में बच्चे का जन्म होता है, तो सारा परिवार उसके ऊपर मोहित हो जाता है। माता-पिता और दादा-दादी बच्चे की देखभाल करने के लिए कई बलिदान करते हैं। वह बच्चे पर बेइंतहा प्यार लुटाते हैं। वे उसे खाना खिलाना, बोलना, चलना, दौड़ना आदि सिखाते हैं। माता-पिता बच्चे के लिए भगवान होते हैं। जहां बच्चा सुरक्षित छत्रछाया में पलता है। धीरे-धीरे समय बदलता है। बच्चा बड़ा होता है। बच्चा बाहर जाता है, नए-नए लोगों से मिलता है। नए अनुभवों को प्राप्त करता है। वह बच्चा समाज में रहकर एक नए व्यक्तित्व का निर्माण करता है। वह अपने कारोबार और अपने जीवन में इतना व्यस्त हो जाता है कि अपने माता-पिता से बातचीत कम हो जाती हैं। कुछ बच्चे अपने माता-पिता को भूल ही जाते हैं समय के साथ स्थिति और भी बिगड़ जाती है।

हमें अपनी संस्कृति को नहीं भुलाना चाहिए-

आज के युग में हम Western Culture के साथ अपनी पारंपरिक प्रथाओं यानी भारतीय सभ्यता को खो रहे हैं। एक समय था, जब हम अपने बड़ों की देखभाल करते थे। उनका सम्मान करते थे और इन्हीं परंपराओं में से एक परंपरा अहम थी। अपने बड़ों के पैरों को छूना। हम अपने बड़ों के पैरों को छूते थे और बड़े हमें आशीर्वाद देते थे। उनके दिल से दुआएं निकलती थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बदल रहा है लोग अपनी संस्कृति भूल रहे हैं। ऐसे में समय है अपनी भारतीय सभ्यता को अपनाने का। इसलिए हम सभी को चाहिए कि हमें अपने बड़ों से प्यार करना चाहिए। प्रतिदिन उनके पैर छूने चाहिए व उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए।

करोड़ों लोगों ने समझा अपने बुजुर्गों का महत्व-

आज बच्चों और माता-पिता के बीच पीढ़ी अंतराल होने के कारण परिवारों में तकरारे बढ़ रही हैं। बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करते। वहीं करोड़ों लोग ऐसे हैं जो अपने बुजुर्गों के महत्व को समझते हैं। उनसे प्यार करते हैं व उन्हें सम्मान देते हैं। डेरा सच्चा सौदा एक ऐसी संस्था है, जो 134 मानवता भलाई के काम करती है। उनमें से एक कार्य अपने बुजुर्गों को सम्मान देना व आदर सत्कार करना है। ये करोड़ो डेरा अनुयाई अपने गुरु जी की पावन शिक्षा से सेवा की शुरुआत अपने घर से करते हैं और अपने बड़े बुजुर्गों का सम्मान करते हैं।

प्रेरणास्त्रोत-

इस सब के प्रेरणास्त्रोत डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख संत डॉक्टर गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां है। जिनका एकमात्र उद्देश्य मानवता की सेवा करना है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि हमें सेवा की शुरुआत अपने घर से करनी चाहिए। अपने माता-पिता का सम्मान करना चाहिए। आज उन के एक आह्वान से डेरा सच्चा सौदा के करोड़ों अनुयाई अपने बुजुर्गों की सार संभाल करते हैं। उनसे प्यार करते हैं।

कुछ शिक्षाए जो आपकी जिंदगी बदल सकती हैं-

पूज्य गुरु संत डॉक्टर गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सा जी ने अपने करोड़ो अनुयायीयो को महान शिक्षा दी है। पूज्य गुरु जी द्वारा दी गई कुछ शिक्षाओं को हम आपके साथ सांझा करना चाहते हैं।

बुजुर्गो का नाम रोशन कर चुका सकते हैं-ऋण

पूज्य गुरु संत डॉक्टर गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इंसान केवल एक रास्ते से अपने माता-पिता का ऋण उतार सकता है। अगर वह इंसान अपने माता-पिता को नाम रोशन करे। उसके माता-पिता उसके नाम से जाने जाए।

बुजुर्गो को भगवान की भक्ति के लिए प्रेरित करना-

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं की इंसान को 50 वर्ष की आयु के बाद अपना ध्यान प्रभु भक्ति में लगाना चाहिए। ऐसे में बच्चों का भी कर्तव्य बनता हैं कि वह अपने बुजुर्गो को भगवान की भक्ति करने के लिए प्रेरित करे।

बुजुर्गो से अनुभव ले-

हमारे बुजुर्गो के पास समय का बहुत अनुभव होता है। उनके पास ज्ञान का खजाना होता है। इसलिए बच्चों को अपने बुजुर्गो से राय अवश्य लेनी चाहिए।

उनके खान-पान का ध्यान रखे-

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि हमें अपने बुजुर्गों की सेहत का भी ध्यान रखना चाहिए। उन्हें उचित समय पर अच्छा खाना देना चाहिए। बुजुर्ग अवस्था में माता-पिता को खाने में परेशानी होती है, तो ऐसे में उनके लिए ऐसा खाना बनाएं जिससे वह आसानी से खा सके। जैसे- दलिया आदि।

बुजुर्गो के साथ समय बिताएं-

माता-पिता जब बुजुर्ग हो जाते हैं, तो उन्हें अकेलापन सताता है। तो ऐसे में बच्चों को चाहिए कि वह अपने बड़ों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं। उनसे कहानियां सुनें व उनके साथ भजन बंदगी करें।

बुजुर्गो की जरूरतों को पूरा करें

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जब माता-पिता बुजुर्ग हो जाते हैं, तो वह बच्चों की तरह व्यवहार करते हैं। ऐसे में हमें चाहिए कि अपने बड़े बुजुर्गों की हर छोटी से छोटी खुशी का ध्यान रखें और उनकी जरूरत को पूरा करें।

Conclusion-

हम सभी भारतीय है, इसलिए हमें अपनी भारतीय सभ्यता को नहीं भूलना चाहिए। क्योंकि हमारी भारतीय संस्कृति जैसी महान संस्कृति पूरे विश्व में किसी की नहीं है। हमारी संस्कृति ने हमें सिखाया है कि हमें हमेशा अपने बुजुर्गो का सम्मान करना चाहिए। हमे अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। हम सभी को मिलकर प्रण लेना चाहिए कि हम ताउम्र अपनी संस्कृति को नहीं भूलेंगे।

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