डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज का पवित्र 129 वां अवतार दिवस (कार्तिक पूर्णिमा, 30 नवंबर)
संत महापुरुष, रुहानी फकीर कुल मालिक, खुद-खुदा स्वरूप होते है। उनका इस पावन धरती पर आने का एकमात्र उद्देश्य लोगों को परमात्मा की भक्ति से जोड़ना होता है। पहले वह संत महापुरुष उस भक्ति के तरीके को अपने आप प्रैक्टीकली करते है और परिणाम मिलने पर फिर लोगो को बताते है। संत ईश्वर के भेजे हुए आते हैं और उनके जीवन का उद्देश्य लोगों को राम-नाम से जोड़ना होता है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए वह बचपन से ही समर्पित हो जाते हैं। यही कारण है कि उनका बचपन आम बच्चों से हटकर दिव्या होता है। क्योंकि वह दिव्यता का भंडार होता है और इस दिव्यता का प्रभाव उनके बचपन से ही दृश्य हो जाता है। उनके बचपन के ऐसे निराले चोज़ होते हैं जो बड़ों बड़ों को हैरत में डाल देते हैं। जैसे बचपन का आकर्षण व बड़ी आयु की अवस्था का तेज लोगों को आकर्षित करता रहता है। जिससे हर कोई उनकी ओर खिंचा चला जाता है। बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज का जीवन दर्शन ऐसे ही चुंबकीय प्रभाव से भरपूर था। जो लोगों को अपनी ओर चले आने के लिए मजबूर कर देता था।
अलौकिक जीवन परिचय-
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज का पावन अवतार दिन विक्रमी सम्वत 1948 यानी सन् 1891 कार्तिक माह की पूर्णिमा को गांव कोटड़ा, तहसील गंधेय, जिला कलायत, बिलोचिस्तान (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ। शहंशाह जी खत्री वंश से संबध रखते थे। शहंशाह जी के पूज्य पिताजी का नाम श्री पील्लामल जी था, जो अपनी ईमानदारी व सच्चाई के कारण ‘शाह जी’ के नाम से प्रसिद्ध थे। आप जी की पूजनीय माता जी का नाम तुलसां बाई जी था, जो अति दयालु व जरूरतमंद के हमदर्द व प्रभु भक्ति में दृढ़ विश्वास रखने वाले थे।
बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के बचपन का नाम खेमामल जी था। ‘शाह मस्ताना जी’, यह पाक पवित्र ऊंचा रूहानी खिताब को शहनशाह जी के पूज्य सतगुरु, मुर्शीदे-कामिल बाबा सावण शाह जी ने बक्शीश के रूप में प्रदान किया और आप जी ‘मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी’ के नाम से प्रसिद्ध कुल मालिक स्वरूप महान संत हुए।
नूरी बचपन के खेल व सेवा भावना-
पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज जब बहुत छोटी उम्र में थे तभी आप जी के पूज्य पिताजी भगवान को प्यारे हो गए थे। पूज्य माता-पिता जी के पवित्र संस्कारो की बदौलत बचपन से ही बेपरवाह साई जी को भक्ति करने का शौक था। आप जी भगवान सत्यनारायण जी पर दृढ़ विश्वास रखते थे और उन्हें भगवान मानते हुए रोजाना घंटो तक उनकी भक्ति में बैठे रहते। पूज्य पिता जी के देहांत के बाद घर परिवार का बोझ अपनी माता जी के साथ-साथ आप जी ने अपने नाजुक कंधो पर ले लिया।
पूज्य माता जी आप जी को खोए की मिठाई बनाकर बेचने के लिए दिया करते थे। एक बार मिठाई की थाली सिर पर रखकर जैसे ही बेपरवाह साई जी बाजार निकले तब रास्ते में आप जी की भेंट एक साधु से हुई। आप जी को बचपन से ही साधु-संतों की सेवा का बहुत शौक था। साधु सत्कार हित आप जी ने उन्हें मिठाई भेंट की। साधु बाबा कहने लगे, यह मुझे देगा तो तुझे बादशाही मिलेगी। उस समय आप जी की आयु मात्र 5–6 वर्ष की थी। आप जी ने साधु से कहा, बाबा! तू कूड़ बोलता है। साधु-बाबा कहने लगे, मैं अल्लाह पाक के हुक्म से बोलता हूं। मैं कूड़ नहीं बोलता। वह साधु सारी मिठाई खा गया और खुश होकर कहां, जा बच्चा! तू दो जहानों का बादशाह बनेगा। आपजी की हैरानी की तब हद ना रही जब वह साधु बाबा देखते ही ओझल हो गए। थाली खाली हो चुकी थी लेकिन पैसा एक भी नहीं आया था। आप जी ने सारा दिन किसी जमींदार के यहां दिन भर मजदूरी की। इतनी छोटी उम्र में कड़ा परिश्रम और लग्न से काम करते देखकर वह जमींदार भाई भी सोचने पर मजबूर हो गया की यह कोई आम बालक नहीं है यह अवश्य ही कोई विशेष हस्ती है।
इस तरह आप जी के बचपन से ही अलग खेल थे जिन्हें देखकर हर कोई हैरान हो जाता था। किसी जरूरतमंद की की मदद करना, ऐसा कोमल हृदय संत महापुरुषो का ही होता है। जो जीव सृष्टि की हमेशा भलाई के बारे में सोचते हैं।
घर गृहस्थी-
बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज लगभग हर समय प्रभु की भक्ति में मगन रहते। यह देखकर पूज्य माता जी ने शहंशाह जी को घर गृहस्ती के मोह जाल में बांधने की कोशिश की। आप जी की शादी कर दी गई। आप जी के यहां एक पुत्र ने भी जन्म लिया, लेकिन पारिवारिक मोह जाल भी आपजी कि उस ईश्वरीय आलोकिक मस्ती में अधिक समय तक रुकावट नहीं बन सका और आप जी ज्यादा से ज्यादा समय पहले की भांति ही प्रभु भक्ति में लीन रहने लगे।
सच की खौज और पूर्ण सतगुरु से मिलाप-
आप जी ने अपने घर में ही एक छोटा सा मंदिर बनाया था। उसमें रखी अपने भगवान सत्यनारायण जी की सोने की मूर्ति के सामने आप जी घंटो बैठकर भक्ति करते। धीरे-धीरे समय बीतता गया व प्रभु से मिलने की तड़प प्रबल होती गई।
एक दिन सफेद पोशाक में अचानक एक फकीर आप जी के पास आए। उन्होंने बताया कि सत्यनारायण भगवान वो मालिक, प्रभु तो इंसान के अंदर है। इसलिए अगर आप उन्हें पाना चाहते हैं, उनके दर्श-दीदार करना चाहते हैं, तो आप जड़ पूजा आदि साधन छोड़कर किसी पूर्ण संत से मिलाप करें। आप जी ने उसी दिन से जड़ पूजा छोड़कर सच्चे व पूरे गुरु की तलाश आरंभ कर दी।
आप जी करीब 9 वर्षों तक लगातार पूर्ण सतगुरु की तलाश में घूमते रहे। आखिर में आप जी डेरा बाबा जैमल सिंह जी ब्यास में पूज्य बाबा सावण शाह जी महाराज जी से मिले। आप जी ने वहां पर कुछ दिन रहकर परम पूजनीय बाबा सावण सिंह जी महाराज के दर्शन किए और रूहानी व सच्ची सत्संग सुनी। आप जी को अपने मन में पूरा विश्वास हुआ की पूज्य बाबा जी ही पूरे सतगुरु खुद खुदा है। आप जी ने पहली नजर में ही पूज्य बाबा जी को सच्चे हृदय से अपना पीरो मुर्शिद, सतगुरु-ए-कामिल मान लिया और अपनी जिंदगी उन्हीं के पवित्र चरण कमलों में न्योछावर कर दी। इस प्रकार आप जी के दृढ़ निश्चय और सच्ची लग्न को देखते हुए परम पूजनीय बाबा सावन सिंह जी महाराज ने आप जी को वो सब बख्श दिया जो आप जी चाहते थे। ‘वो नाम खजाना’ वो ‘धूर की वाणी’ वो ‘नाम खुमारी’ और सब कुछ। पूज्य बाबा सावण शाह जी ने गुरुमंत्र, नाम-शब्द देते हुए यह भी वचन फरमाए, ‘आपको सब काम करने वाला राम देते हैं’।
शहंशाह जी का नाम खेमामल से मस्ताना शाह पड़ा-
आप जी अपने सतगुरु मौला के प्यार में अपने नूरी देह पर मोटे-मोटे घुंघरु बांध कर खूब मस्ती में नाचा करते थे। सेवा करते, सिर पर लकड़ियों का या मिट्टी का भारी वजन होता और पैरो में घुंघरु बंधे होते, साई जी सेवा भी करते और साथ में नाचते भी चलते। आप जी ने अपने सतगुरु मौला को नाच-नाच कर, सेवा व सिमरन के द्वारा ऐसा खुश किया कि मालिक और सेवक एक हो गए। उस समय लगभग 70 हजार के करीब साध-संगत में आप जी ने अपने सतगुरु को रिझा लिया। आप जी की इस प्यार भरी मस्ती को देखकर बाबा सावण शाह जी ने शहंशाह जी का नाम खेमामल से ‘मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी’ रख दिया।
सावण शाही इलाही बख्शिशे, बेपरवाह साईं जी को बनाया बागड़ का बादशाह -
पूज्य सावण शाह साई जी ने आप जी को अपनी अपार रूहानी बख्शीशो से नवाजते हुए बागड़ का बादशाह बनाकर सिरसा में जाकर डेरा बनाने व सत्संग लगाने व राम नाम जपाने के लिए वचन फरमाए। साईं जी ने यह भी वचन फरमाए कि हम तुम्हें अपनी ‘सवा रुपया’ रूहानी ताकत देते हैं और तुम्हें *बागड़ का बादशाह* बनाते हैं तथा अपना स्वरूप भी तुम्हें देते हैं। जो कुछ भी और भी मांगोगे सब कुछ देंगे, इस तरह जो-जो वचन पूज्य बाबा सावण शाह जी ने आप ही से कहें आप जी ने सत्य वचन कहते हुए अपने गुरु के प्रति सच्चे मुरीद होने का उदाहरण दुनिया में रखा। पूज्य साईं जी ने अपनी मौज खुशी में आकर अपनी बख्शीशो के वचन करते ही जा रहे थे। आप जी ने जो-जो आपने रहबर से विनती की पूज्य साईं जी ने सब कुछज्यों का त्यों अपने पावन आशीर्वाद से स्वीकार किया।
साई जी ने जो भी मांगा, सावण शाह जी ने परवान किया-
आप जी सच्चे प्रेम की मस्ती में अपने सतगुरु भगवान को कई नामों से बुलाते और उन अनेक प्यारे-प्यारे नामों में आप जी भी पूज्य सावण शाह जी को ‘मक्खन मलाई!’ ‘मेरे मक्खन मलाई’ भी कहा करते। आप जी ने कहा मेरे मक्खन मलाई असी ता तुझसे ही मंगणा है और तुझसे ही मांगना है। आप जी ने जो कुछ भी बाबा जी से मांगा, सावण शाह जी ने खुशी से आप जी की हर मांग को परवान किया। आप जी अनमोल रहमतो की मांग इस प्रकार है -
1. हम जिसको भी नाम दे, वो रुहान मंडलों पर ना भटके और उसका एक पैर यहां और दूसरा सीधा सचखंड में रहे।
2. सच्चे सौदे के मुरीद को, जो वचनों पर सही रहे, उसे कभी किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़े।
3. हमने ना किसी राधा को देखा है और ना किसी स्वामी को जानते हैं। हमने जो कुछ पाया है अपने सोहणे सतगुरु साईं सावण शाह जी से पाया है। इसलिए हमारे लिए साईं सावण शाह जी का ही हमारा धन है। मेरे सतगुरु ही धन धन है और हमारे लिए यह नारा कबूल होवे जी।
4. बॉडी पढ़ी-लिखी नहीं है, कैसे हम लोगों को समझा सकेंगे। हमारी बोली भी सिंधी है, कैसे लोग हम से जुड़ेंगे।
जब मुर्शिद खुश हो और अपना रूप बनाते हुए उसको इलाही ताकत बख्श रहा हो तो मुरीद की मांगे उसके लिए छोटी बात है। इस तरह सावण शाह जी ने आप जी की सभी मांगो को मंजूर किया और साई जी को अपने अनमोल वचनो की बौछार करते हुए फरमाया कि
1. जा मस्ताना, तू जिसको भी नाम देगा वो किसी मंडलों या चक्रों में नहीं भटकेगा। तुम्हारा प्रेमी सीधा सचखंड जाएगा।
2. तुम्हारा मुरीद जो तुम्हारे वचनों को मानेगा, उसे कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा।
3. तुम्हारे लिए ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा मंजूर है। इस नारे में बहुत ताकत है। तुम्हारा यह नारा दो जहानों में काम करेगा।
4. तुम सीधे-सादे हो, बेशक सिंधी बोलते हो, लोगो को तुम्हारी समझ आवे ना आवे, वह तुम्हारी आवाज के ही आशिक होंगे और तुम्हारे पीछे-पीछे मस्त होकर घूमते रहेंगे।
पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज को अपने मुर्शीद ए कामिल की अनगिनत बख्शीशो में यह भी वरदान मिला कि ‘मस्ताना शाह तुम्हारी आवाज खुदा की आवाज’ लोग तुम्हारी आवाज के आशिक होंगे, तुम्हारी आवाज सुनकर अपने आप खींचे चले आएंगे इत्यादि। अपनी इलाही बख्शीशो को नवाजते हुए आप जी को राम नाम का डंका बजाने के लिए सिरसा में भेज दिया।
डेरा सच्चा सौदा की स्थापना-
अपने सतगुरु मौला की उपरोक्त बख्शीशों व वचनों के अनुसार बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने शाह सतनाम जी मार्ग, बेगू रोड पर 29 अप्रैल 1948 को डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की व ‘सच्चा सौदा’ के नाम से एक छोटी सी कुटिया स्थापित की और यहां पर राम-नाम का प्रचार शुरू किया। और राम नाम के बदले लोगों से तीन वचन लिए। आप जी ने तीन सिद्धांत दिए -
3 Principles of Dera Sacha Sauda -
1. मांस अंडा नहीं खाना।
2. शराब का सेवन नहीं करना।
3. अपने से उम्र में छोटे हैं तो बेटा-बेटी के समान और अगर हम उम्र हैं तो भाई-बहन के समान और अगर बड़े है तो माता-पिता के समान समझना है।
बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के इन वचनो पर करोड़ो लोगों ने अमल किया और अपने जीवन के मायने ही बदल दिए।
आवागमन से मोक्ष मुक्ति का सरल तरीका -
बेपरवाह साई जी ने राम-नाम का ऐसा सरल तरीका बताया व सच्चे मोक्ष का रास्ता दिखाया की जिस जिसने भी अमल किया उसके दोनों जहान ही संवर गए। जीते जी गम, दुख-दर्द से आजादी व मरणोपरांत आवागमन (जन्म- मरण, 84 लाख जूनीयो) से मुक्ति। बेपरवाह जी ने 12 साल तक नोट, सोना-चांदी कपड़े, कंबल बांटकर, डेरा सच्चा सौदा में बहुत बड़ी-बड़ी अलीशान इमारतें बना देना और तुरंत गिरवा देना इत्यादि ऐसी रूहानी खेल दुनिया के सामने किए कि लोग हैरान हो गए। आप जी ने इस तरह हजारों लोगों को नाम शब्द प्रदान कर उनके लोक परलोक को सुधारा, उनकी गंदी आदतें वह बुराइयां छुड़वाई और मालिक की भक्ति में लगाया।
ज्योति जोत समा गए -
आप जी ने 1948 से 1960 तक लगातार 12 वर्षो तक हजारो लोगो को राम नाम से जोड़ा और 28 अप्रैल 1960 को श्री जलालआणा साहेब जिला सिरसा के पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को गुरुगद्दी सौपकर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। इस तरह शहंशाह जी परम पिता जी को गुरुगद्दी सौंप कर 18 अप्रैल 1960 को ज्योति जोत समा गए। बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने वचन फरमाए कि हम 7 वर्षो बाद नौजवान बॉडी में आएंगे और साईं जी के वचन ज्यों के त्यों पूरे हुए।
राम-नाम का पौधा लगाया-
रुहानियत के सच्चे रहबर, करोड़ो लोगों के मसीहा व डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक सांई शाह मस्ताना जी महाराज ने जो पौधा वर्ष 1948 में लगाया था वह पौधा आज विश्व भर में लहरा रहा है। डेरा सच्चा सौदा की शाखाएँ आज़ विश्व भर में लहलहा रही है।
इन्सानियत की अलख जगाई-
शाह मस्ताना जी महाराज जिन्होंने हमें इंसानियत/मानवता का ऐसा पाठ पढ़ाया व आपसी भाईचारे का ऐसा संदेश दिया कि आज करोडो़ लोग उनके दिखाए रास्ते पर चलकर अपना जीवन खुशी से जी रहे हैं। उन्होने मानवता की ऐसी मशाल जलाई जिससे सारा जगत प्रकाशमय हो रहा है। उनकी प्रेरणाओ पर चलकर आज डेरा अनुयायी 134 मानवता भलाई के कार्य कर रहे हैं।
आखिर में…..
डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के पावन अवतार दिवस की आप सभी को अरबो-खरबो बार बधाई हो जी!!